
21 मार्च को रिकॉर्ड किया गया एक पुराना वीडियो अचानक सोशल मीडिया पर ट्रेंड कर रहा है। इसमें जानी-मानी साध्वी ऋतम्भरा ने सोशल मीडिया पर महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे अश्लील कंटेंट को लेकर तीखी आपत्ति जताई है। उनका कहना है,
“हे भगवान! ये नग्नता देखकर शर्म आती है। क्या अब ठुमके लगाकर पैसा कमाना शेष रह गया है?”
अब इस बयान को केवल एक “धार्मिक चिंता” न मानें, यह सीधा-सपाट एक सोशल कमेंट्री है जो भारतीय संस्कृति की दुहाई देती है… और शायद इंस्टाग्राम की एल्गोरिद्म को भी डांटती है।
ओपी राजभर बोले – “रील से विसंगति, रोक तय है!”
बलिया दौरे पर पहुंचे उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री और सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर भी साध्वी ऋतम्भरा के सुर में सुर मिलाते नजर आए। उनका बयान भी उतना ही कड़ा था:
“गंदी रील बनाकर पैसे कमाना समाज में विसंगति फैला रहा है। सरकार का ध्यान इस पर है और रोक लगेगी।”
राजभर जी की ये बात सुनकर शायद सोशल मीडिया क्रिएटर्स अपने रिंग लाइट्स को बंद कर चुके हों… या फिर नया टाइटल सोच रहे हों — “गंदी रीलें: बैन से पहले आखिरी ठुमके!”
प्रेमानंद और अनिरुद्धाचार्य भी दे चुके हैं बयान
गौरतलब है कि हाल ही में अनिरुद्धाचार्य और प्रेमानंद महाराज ने भी महिलाओं के पहनावे और रील कल्चर पर सवाल उठाए थे। धार्मिक मंच अब मानो डिजिटल नैतिकता के सेंसर बोर्ड बन चुके हैं। हर नया बयान एक “संदेश” बन गया है और हर महिला क्रिएटर, एक “संभावित अपराधी।”
ठुमके vs धर्मसभा, कौन जीतेगा?
सोचिए, अगर GDP का एक कॉलम होता – “ठुमकों से हुई कमाई,” तो शायद कई कथावाचक भी अपना करियर बदलने का सोचते! लेकिन फिलहाल, मंच पर है धर्म, और कटघरे में है सोशल मीडिया।
कुल मिलाकर मामला ऐसा हो चला है जैसे ‘संस्कृति की पंचायत’ बैठी हो और हर रील एक चार्जशीट बन चुकी हो।
तो क्या बैन होगा Instagram का ‘रील सेक्शन’?
नहीं! बैन तो शायद नहीं होगा, लेकिन हाँ, बहस ज़रूर होगी। संस्कृति बनाम स्वतंत्रता की ये लड़ाई आने वाले चुनावों, मंचों और मीडिया हेडलाइन्स में खूब चलेगी। और तब तक – रील बनाना या न बनाना, यही है प्रश्न।
साध्वी ऋतम्भरा और ओपी राजभर का बयान उस बड़ी बहस का हिस्सा है, जहां संस्कृति, महिला स्वतंत्रता और डिजिटल कमाई तीनों एक ही थाली में परोसे जा रहे हैं। कौन सही, कौन गलत — ये तय करना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि रील संस्कृति अब सिर्फ मनोरंजन नहीं, राजनीतिक विमर्श भी बन चुकी है।
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